सेल डीड कैंसल करना इंडिया में सिविल लॉ का एक डिफिकल्ट और इंपोर्टेण्ट एस्पेक्ट हो सकता है। फ़ैक्टस का सुप्रेशन और मिस रिप्रजेंटेशन की ओर ले जाती है जिसे कैंसल करना एक बैड डील्स से एकमात्र प्रेस वे बन जाता है। लेकिन इस तरह के कैंसलेशन के लिए स्पेसल बेस और रीज़न की आवश्यकता होती है क्योंकि जनरली ऐसे कैंसलेशन को कानून द्वारा परमिसन नहीं है। डिसोल्यूसन डीड के लीगल प्रोविजन्स को नीचे दिस्क्राइब्ड किया गया है।
नीचे लिस्टेड Vakilsearch में प्रदान की गई कुछ लीगल सर्विसेस हैं । यदि आप उन्हें यूजफूल पाते हैं तो हमसे कटैक्ट करने में हेजिटेट न करें।
सेल डीड कैंसलेशन
स्पेसिफिक रिलीफ़ एक्ट 1963 की आर्टिकल्स 31 से 33 के अनुसार जब कोई वर्क कैंसल किया जा सकता है तो उसके बारे में जानकारी दी जाती है। इस एक्ट के अनुसार कैंसल करना कब और कहाँ संभव है |
- एक व्यक्ति को लगता है कि डीड वाएबल है या डाउट है कि इस तरह के डीड को आउट स्टैंडिंग होने पर उसे हर्ट की जाएगी।
- यदि इंडियन रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 में रेटेड कानूनों के अनुसार डीड रजिस्टर किया गया था।
- कैंसलेशन को सभी पार्टी की म्यूचुयल एग्रीमेंट से एक्जक्यूत किया जा सकता है।
सेल डीड पार्सिएल (थोड़ा सा ) कैंसलेशन करने के लिए
- जब डीड में पार्टिशन शिप के क्लियर सिग्नल होते हैं या जब यह क्लियर होता है कि दस्तावेज़ में वेरियस मेंशन लोगों के पास अलग-अलग राइट या ओब्लिगेशन हैं तो कोर्ट पार्सिएली इसे कैंसल कर सकती है और इसे रेजीड्यू के लिए खड़े होने के लिए एग्री हो सकती है।
कंपेन्सेशन
- कैंसलेशन पर यदि कोर्ट इसे ठीक देखती है तो वह दूसरे पार्टी को कंपेन्सेशन की पेशकश कर सकती है या डीड की अनफ़ेयर नेचर के कारण पहले द्वारा प्राप्त प्राफ़िट को रिटर्न कर सकती है और सभी एरियर्स का पेमेंट कर सकती है।
- यदि कोई डिफ़ेंडेंट एक केश का अपोज करता है क्योंकि उसके या उसके अगेन्स्ट वर्क जीरो है या क्योंकि डिफ़ेंडेंट को इसके कारण कई लाभ प्राप्त हुए हैं तो अदालत डिफ़ेंडेंट को इसके लिए मुआवजा देने का आदेश दे सकती है।
- यदि इंडियन कंट्रेक्ट एक्ट, 1872 की आर्टिकल 11 में डिफ़ाइन लॉ के अनुसार डीड तैयार नहीं किया गया है तो कोर्ट उसे उस पार्टी को किसी भी प्राफ़िट को रिस्टोर करने देने के लिए चुज कर सकती है कि उसे या कोर्टेसी डीड का आनंद मिला है।
रिलीफ़
रिलीफ़ प्रदान करना प्रोटेक्टिव या प्रवेण्टिव जस्टिस के प्रिंसिपल पर काम करता है और इसलिए डेबटर द्वारा एक्ज्क्युटेड डाक्यूमेंट पर लागू होता है। इसका मतलब यह नहीं है कि डेबटर को कंटरैक्ट के लिए एक पार्टी होना चाहिए लेकिन इसके बजाय वह फाइल सूट कर सकता है यदि डीड उनके इन्टरेस्ट के अगेन्स्ट है।
जरुरी कंडीशंस
- डीड को उनके अगेन्स्ट जीरो होना चाहिए
- डिफ़ेंडेंट के लिए सिरियस इंजरी के बारे में एक रिजनेबल अपृहेंसन
- कोर्ट में फैसला देने के लिए मैटर फिट है
जीरो एंड जीरो एकसन्स
एक कंटरैक्ट या डाक्यूमेंट जो कानून द्वारा अप्लीकेबल नहीं है को इंडियन कंटरैक्ट एक्ट की आर्टिकल 2 (8) के अंडर जीरो कहा गया है। कहा जाता है कि यदि कोई कंटरैक्ट जीरो है तो
- इसका विचार कानून द्वारा प्रोहिबिटेड है
- अगर परमिशन दी गई तो किसी भी कानून के अगेन्स्ट जाएगा
- फ्रडुलेंट है
- किसी को या किसी चीज को हर्ट पहुंचाना या उसका मीनिंग
- इमोरल है या जनता के सर्वोत्तम हितों के अगेन्स्ट है
यह ध्यान दिया जाना है कि एक माइनर द्वारा एक कंटरैक्ट जीरो है।
एक कंटरैक्ट या डाक्यूमेंट जो कानून द्वारा इन्फोर्सिबल है एक या अधिक पार्टी की एग्रीमेंट से लेकिन ऐसा नहीं है कि कई अन्य पार्टी के इन्टरेस्ट में एक जीरो कंट्रेक्ट है। कहा जाता है कि यदि कोई डीड जीरो है तो
- एग्रीमेंट को फोर्सफुली, फ़्राड या मिस रिप्रजेंटेशन द्वारा लाया जाता है
- अनरीजनेबल एफेक्ट से इंस्पायर
उचित आशंका
रिजनेबल अपृहेंशन सेक्शन स्पेसिफिक रिलीफ़ एक्ट की आर्टिकल 31 के अंडर आता है और यह प्रोटेक्टिव जस्टिस और क्वेश्चन टाइम ( फियर के लिए) की कांसेप्ट पर बेस्ड है । स्पेसिएली क्वेरी या सूट की कंडीशन और सर्क्युम्स्टेंस के अनुसार रिजनेबल अपृहेंशन मैटर में डिफर होती है।
लिमिटेशन्स
- एक राइट नहीं है और इसलिए बहुत विवेक (डीस्क्रेशन) की आवश्यकता है
- पार्टियों में हैं तो Pari delicto (बराबर गलती में) और फ़्राड तो क्लेम लगाया है कोर्ट का क्लेम कैंसल हो सकता है जहा डिफ़ेंडेंट समान रूप से रिस्पांसिबल है
- एकजामिनर के लाइफ टाइम के ड्यूरेशन मे फाइल नहीं किया जा सकता है
पार्सिएली कैंसलेशन केवल तभी पासिबल है जब किसी डीड के अंडर लिस्टेड राइट्स अलग – अलग हों और ऐसे मैटर में कंपेन्सेशन के लिए पेटीशन फाइल की जानी चाहिए।